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संध्या क्या है और संध्या के साइंटिफिक इंटरप्रिटेशन क्या हैं ?

संध्या क्यों करें इससे पहले यह जानना आवश्यक हो जाता है कि संध्या क्या है , संध्या के साइंटिफिक इंटरप्रिटेशन मॉडर्न युग के अनुसार क्या है ?

संध्या केवल पूजन अनुष्ठान मात्र नहीं होकर ब्रह्मांडीय ऊर्जा ,ब्रह्म तेजस्विता , प्रज्ञा एवं सभी इनटेंजिबल गुण जैसे आत्मबल, एकाग्रता , चैतन्यता , प्रज्ञा, मनः शांति , प्रफुल्लता , ओजबल जैसे दुर्लभ गुणों की प्राप्ति के लिए किया जाने वाला वैज्ञानिक प्रयोग है , एक्सपेरीमेंट है , हमारे जीवन मोबाइल का बैटरी चार्जर है।

हमारे ऋषि मुनियों ने जीव , प्रकृति और ईश्वर के बारे में बहुत ज्ञान प्राप्त किया हुआ था , उन्होंने उपनिषदों , वैदिक मन्त्रों से शरीर विज्ञानं के बारे में बहुत बारीकी से जाना और। खगोलीय ज्ञान , ब्रह्मांडीय ऊर्जा के बारे में ज्ञान प्राप्त किया।
शरीर विज्ञानं , ब्रह्मांडीय ऊर्जा, प्रकृति और ईश्वर (ब्रह्म) का हमारे जीवन में विशेष मंत्र स्वर ध्वनियों के, मुद्रा हस्त, जल एवं विभिन्न भू क्रियाओं , न्यास , आसन , मानसिक जाप , मस्तिष्क तरंगों के माध्यम से तेजस्वी जीवन के संतुलन का विज्ञानं है है संध्या जोकि गतिमान पृथ्वी पर दिन के विशेष समय में की जाती है।
जिस प्रकार से शरीर को अन्न से ऊर्जा मिलती है , शरीर चार्ज होता है अन्न शरीर को शक्ति देता है , उसके लिए हम भोजन करते हैं। उसी प्रकार वैदिक विज्ञानं में प्राण शक्ति को चेतना और प्रज्ञा के लिए ऊर्जावान होना महत्वपूर्ण कहा है , जो मन मस्तिष्क की आंतरिक शक्तियाँ हैं जैसे आत्मबल, एकाग्रता , ध्यान, मानसिक तेजस्विता, प्रज्ञा इन सबकी वृद्धि कैसे हो इसके लिए शक्ति को बढ़ाने के लिए तेजस्विता को बढ़ाने के लिए संध्या की जाती है।

 

संध्या का साइंटिफिक इंटरप्रिटेशन :
जैसे मॉडर्न साइंस के अनुसार समझे तो सूक्ष्म तरंगों के संचार के लिए भू स्थान पर टॉवर चाहिए , विद्युतीय शक्ति चाहिए , निश्चित फ्रेक्वेंसीज़ के बैंड चाहिए , रिसीवर एन्ड पर , रेसिप्रोकेशन इंस्ट्रूमेंट चाहिए , पोर्टिंग मैटर चाहिए ,,,,,इन सबके बिना संचारण आवागमन नहीं हो सकता !
इसी प्रकार संध्या में आसन भू शुद्धिकरण ,आचमन , न्यास एवं विभिन्न मुद्राये कनेक्टिविटी स्थापित करती हैं , संकल्प से पोर्टिंग मैटर निर्धारण होता है , सूर्य उपस्थान एवं २४ गायत्री मुद्राएँ संकल्प मैटर की पोर्टिंग में संचारण में सहायक होती है , विशेष स्वर ध्वनियों में किये वैदिक मन्त्रों की स्पेशलाइज्ड साउंड फ्रेक्वेंसी और उनसे उत्पन्न वायब्रेशन्स में प्राण शक्ति के माध्यम से संचारण की शक्ति होती है , इस प्रकार दिन के विशेष समय में जब वैश्विक ऊर्जा का एकमात्र स्रोत्र सूर्य अपने गमन पथ पर होते हैं उस समय यह वैज्ञानिक प्रयोग शरीर में ऊर्जा एवं तेजस्विता प्राप्ति के लिए किया जाता है।

संध्या कैसे की जाती है इस पर बहुत सारी पुस्तके उपलब्ध हैं , लेकिन जैसे केवल किसी न्यूरो सर्जरी की बुक पढ़कर ऑपरेशन करना नहीं सीखा जा सकता उसी प्रकार संध्या भी कसी अनुभवी शिक्षक के साथ सही मंत्रोच्चार विधि से सीखी जा सकती है।

संध्या करने से होने वाले लाभ :
संध्या में आचमन , प्यूरिफिकेशन , गायत्री ,सूर्य उपस्थानं , न्यास एवं मानसिक मन्त्र जाप
इन सबसे होने वाले लाभ।
स्टूडेंट्स : आत्मबल, एकाग्रता बढ़ती हैं , सब्जेक्ट पर फोकस करने की , विषय को याद रखने के लिए स्मरण शक्ति बढ़ती है , शरीरिक शक्ति में भी वृद्धि होती है। मन में वैदिक विषय के प्रति जिज्ञासा बढ़ती है , सफलता का प्रतिशत बढ़ता है , मन चाहे विषय को समझने एवं उसे याद रखने में सहायता मिलती है।
जॉब , सर्विस : कार्य करने के लिए आवश्यक ऊर्जा का प्रवाह पूरे दिन रहता है , आत्मबल वृद्धि , मन प्रफुल्ल रहता है।
सेल्फ एम्प्लॉयड : अपने विषय पर शोध एवं नए रिसर्च के लिए प्रज्ञा में वृद्धि होती है , स्व विवेक एवं निर्णयात्मक बुद्धि की वृद्धि होती है।
व्यापार : त्वरित निर्णय शक्ति, कार्य शक्ति , मनन शक्ति , प्रबंधन जैसे कार्य के लिए विवेक वृद्धि इन सबके प्रतिपादन करने से व्यापार में लाभ होता है।

शास्त्रों में त्रिकाल संध्या का उल्लेख किया गया है , लेकिन देश काल, एवं मॉडर्न युग की परिस्थिति के अनुसार प्रातः काल की संध्या को सरल विधि से करने से भी बहुत लाभ होता है।

संध्या विधि के लिए बहुत ही कम सामग्री की आवश्यकता पड़ती है , २० मिनिट से अधिक का समय भी नहीं लगता है। लेकिन इससे होने वाले लाभ बहुत हैं।

विजय रावल
वैदिक स्कॉलर
90989 48334

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